“दर्द भरी दिवाली”
" पटेल साहब आपका फोन है।"
प्यून ने स्टाफ रूम में बैठकर पेपर चेक कर रहे पटेल साहब को आवाज लगाई ।
जैसे तैसे ही कागजों का बंडल बांधा और पटेल साहब कार्यालय में चले गए।
फोन
उनके बेटे का
था।
इस साल वह और उसकी पत्नी रेखा दिवाली मनाने के लिए अपने बतन के गाँव आ रहे थे। पटेल साहब ख़ुशी से फुले नहीं समां रहे थे। कारन भी तो था!! बेटा और बहु पिछले पांच सात बरस से शहर में ही दीवाली मनाते थे । क्योकि उनकी बहु रेखा को गाँव गन्दा लगता था और शहर के जैसे गाँव में उनको त्योहारों का मजा नहीं आ रहा था। पर इस बार जतिन को हर साल से ज्यादा छुट्टिया मिलने वाली थी।
उनके लिए ये खबर का जितना महत्व हो उतना दुसरो के लिए न हो ये स्वाभाविक था फिर भी बिना पूछे ही सब को 'जतिन दीवाली पर गाँव आ रहा हे ' ये खबर देने लगे।
लंच ब्रेक के समय वो प्रिंसिपल के पास गये ।
"सर ,क्या में अभी घर जा सकता हूँ ?
पटेल साहब की खुशी प्रिंसिपल से छिपी नहीं थी .. छुट्टी देते समय वे पटेल साहब को घूरते रहे जिन्होंने अपने खाली समय में कभी छुट्टी नहीं मांगी। पर पटेल साहब ने तो बिना पूछे छुट्टी का कारन भी बता दिया। दोनों समवयस्क थे और प्रिंसिपल जतिन के बारे में जानते भी थे की वो शायद ही कभी उनके हालचाल पूछता है। वह और उसकी पत्नी पिछले कई सालों से दीवाली पे घर नहीं आते उसका पटेल साहब को बहोत दुःख है।
पटेल साहेब को बेवक्त घर आते देख, उनकी पत्नी मायाबेन को आश्चर्य हुआ। कपड़े रस्सी पर सुखाने छोड़ कर वो बाहर गलियारे में आकर खड़ी रही । पटेल साहब के आगमन के साथ, उन्होंने सवालों की बारिश शुरू कर दी।
"क्यों क्या हुआ? क्या तुम्हारी तबीयत खराब है? इस वक्त घर? क्या किसी को कुछ हुआ है? जतिन की कोई खबर? बहु की तबियत तो अच्छी है ना?"घर में आने और कुर्सी पर बैठने के बाद, पटेल साहब ने उनके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
"आप कुछ क्यों नहीं कहते? सब ठीक तो है ना?"
"तुम पहले चाय बनाओ फिर बताता हूँ। "
"चाय? पर आपने तो पांच साल से चाय छोड़ दी है और आज चाय ?"
"हाँ, आज खबर ही ऐसी है कि तुम भी खुश हो जाओगी।"
हालाँकि मायाबेन चाय बनाने के लिए बैठ गई, लेकिन उनका मन तो वो खबर सुनने के लिए बेसब्र था।
"आज जतिन का फोन था। वो और रेखा इस साल बच्चों के साथ दिवाली मनाने हमारे बतन में आ रहे है।"
मायाबेन को यह सुनकर बहुत खुशी हुई।
वे जतिन के आने की खबर बताने के लिए महल्ले के घर-घर गए।
शाम को, पटेल साहब ने कागज पर एक लंबी सूची बनाई, जिसमें अपने पुराने घर की स्वच्छता से लेकर घर को रंगवाने और किराने के सामान से लेकर बच्चों के पटाखे तक सब की लम्बी लिस्ट बना ली । और मायाबेन ने मिठाई और नमकीन बनाने के लिए सोच लिया ।उन्होंने खुद मिठाइयाँ और नमकीन बनाने और गाँव ले जाने का फैसला किया। उन्होंने भी मुहल्ले की बहनों की मदद से तैयारी शुरू कर दी।
"मेरे जतिन को घर के बने गांठिया बहुत पसंद है और गुजिये और घेवर तो देख कर ही टूट पड़ता है। तीखे में उसको सेव और मठिया तो इतना पसंद है की मुझे दो दो बार बनाने पड़ते है। "
इस
प्रकार जतिन को
क्या क्या पसंद
है उसकी बातें
करती जाती और
नए नए व्यंजन बनाती
जाती। उनका उत्साह
भी कुछ कम
नहीं था। वह अकेले
इतना काम करने
से थकती भी
नहीं थी। वह
नए किराने का
सामान मंगाती रही
, यहां तक कि
पटेल साहब बिना
सवाल किये सब कुछ
ले आते और
तैयारी करते जाते
।
आज से, पटेल साहब की दिवाली की छुट्टी थी, तो मायाबेन भी गाँव जाने के लिए तैयार थी। किराये पे गाड़ी लेकर वह दोने गाँव जाने के लिए निकले।
आज धनतेरस, जतिन शाम की ट्रेन में आएगा .. उसका इंतजार कर रहे हैं इस जोड़े को दिन बहुत लंबा लगा।
शाम की आखिरी ट्रेन भी आई, .. लेकिन न जतिन आया और न ही कोई खबर ।
"मैं कहती हूं कि आप उसे फोन तो करों ... क्या पता अब तक क्यों नहीं आया ?"
पटेल साहब ने बहुत कोशिश की लेकिन जतिन का फोन ही नहीं लगा । दंपति की चिंता बढ़ने लगी।
"जरूर कुछ हुआ होगा। उसकी कोई खबर नहीं है। मेरी चिंता बढ़ रही है।"
किसी और का फोन नंबर भी नहीं था ।
“दो दिनों में, दिवाली, आपको जांच करनी चाहिए “... मायाबेन को चिंता के साथ बेचैनी भी बढ़ रही थी।
अगले
दिन पटेल साहब
ने शहर जाकर
खुद जाँच करने
का फैसला किया।
वह शहर पहुंचे
तो सही पर
जतिन जिस सोसायटी
में रहता था
उसको बदले हुए
तीन तीन साल
बीत गए थे।
उन्हें पता
नहीं था कि
अब वो उसे
कहा ढूंढे ।
वह उलझन में
पड़ गए। उनको
कोई रास्ता नहीं
सूझ रहा था।
पटेल साहब स्तब्ध रह गए .. वह एक पल के लिए कांप गए जब उन्होंने माया बहन के बारे में सोचा।
सोसायटी
के बाहर एस.टी.डी.
पर से माया बहन
को फोन लगाया लेकिन
सच बताने की
हिम्मत नहीं की।
"जतिन को कार्यालय में महत्वपूर्ण काम मिला है, इसलिए वह दिवाली की रात को ही गाँव आ सकता है। इन दो दिनों के लिए उसको छुटी नहीं मिली और वह काम की उलजनों में फोन भी नहीं कर सका है। मैं शाम की ट्रेन में आऊँगा। ”
"तो .तुम भी वहाँ रुक जाओ और सब के साथ आ जाना। एक रात में तुम्हारे बिना कुछ नहीं बिगड़ेगा , सबको साथ लेके तुम भी कल ही आना।"
"ठीक है ..मैं ऐसा ही करूंगा" उसने फोन रख दिया ... उन्होंने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला, आज वह झूठ बोलकर पछताते है। उनकी आँखों में आंसू आ गए। वह देख कर एस.टी.डी.वाले ने उनसे फोन के पैसे लेने से इनकार कर दिया और इतना ही नहीं , उन्हें अपने स्कूटर पर स्टेशन पर छोड़ने के लिए भी आया।
जब पटेल साहब रात में घर पहुँचे, तो मायाबेन मोहनथाल की थाली में चाकू से पीस निकाल रही थी। पटेल साहब को आते देख काम छोड़ कर कड़ी रह गई। और सच जानने के बाद वह भी निराश हो गई।
पूरी रात आँसू बहा रहे इस जोड़े की आँखें रो रो कर सूझ गई थी। दुख इस बात का नहीं था कि वह नहीं आया , पर इस बात का दुःख था की आने का कह कर नहीं आया !! ... और वैसे भी पिछले पाँच वर्षों से कहाँ आया था ... लेकिन नहीं आ रहा था वह खबर भी नहीं दी।
जो दर्द ‘वो नहीं आ रहा था’ वो बर्दाश्त करने लायक था लेकिन ‘वो कह कर नहीं आया’ वो असहनीय था ..बिना बताए टूर पर गया, और उसके आने का इंतज़ार किया .. वह दर्द बहुत असहनीय था। आज की दिवाली इस जोड़े के लिए दिल तोड़ने वाली दिवाली थी जिसमें कोई खुशी या उत्साह नहीं था ... केवल पश्चाताप, घृणा और ... नफरत ।
महोल्ले में हर किसी के घर में दीवाली की जगमगाहट हुई ... रंग-बिरंगी रोशनी फैली .... जब की पटेल साहब के घर सिर्फ अंधेरा हुआ .... नफरत भरा अँधेरा ..!!
आंगन में बैठे दंपति की तन्द्रा टूटी , जब महोल्ले के बच्चे हाथों में दिवाली की मशाल पकड़े हुए आए और गाने लगे, "आज दिवाली है, कल दिवाली है।"
माया बेन की आंखे हर बच्चे में अपने छोटे से जतिन को खोजती है..आंसू से भीगे पल्लू की आड़ से..इस “दर्द भरी दिवाली” की रात में ..
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